भारत में दिवाली की अनोखी परम्पराए

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भारत में दिवाली की अनोखी परम्पराए

भारत में दिवाली की परंपराएं अनोखे अंदाज में- भारत को त्यौहारों का देश भी कहा जाता है और ये त्यौहार ही यहाँ की रौनक हैं। दीपावली का उत्सव यहाँ के प्रमुख त्यौहारों में से एक है। हिंदू संस्कृति के इस रौशन पर्व पर घरों की सफाई करना, रंगोली बनाना, दिये जलाना, मिठाइयां बनाना और बाँटना ये कुछ ऐसी परंपराएं हैं जो देशभर में मनाई जाती हैं। लेकिन जैसा कि हमारे त्यौहार भी भारत की विविधता के रंग में डूबे होते हैं, इसीलिए इनको मनाने के रीति-रिवाज़ एवं परंपराओं में भी विविधता देखी जा सकती है। तो आइये हम आपको भारत के विभिन्न हिस्सों में दीपावली के उत्सव की अनोखी परंपराओं के बारे में बताते हैं।

 

भारत में दिवाली की अनोखी परम्पराए:

उत्तर भारत में दिवाली

उत्तर भारत में दिवाली का त्योहार भगवान राम और श्री कृष्ण दोनों से ही जुड़ा है। उत्तर भारत में दिवाली 5 दिनों का त्योहार है। जहां पहला दिन धन के देवता कुबेर और भगवान धन्वंतरि से जुड़ा है, वहीं दूसरा दिन नरक चतुर्दशी का दिन है जब श्री कृष्ण ने नरकासुर नाम के राक्षस को मारा था। तीसरा दिन मां लक्ष्मी के पूजन से जुड़ा है और अयोध्या में श्री राम की वापसी को याद करते हुए मनाया जाता है। चौथा दिन गोवर्धन पूजा और अन्नकूट पूजा यानी श्री कृष्ण की लीलाओं से जुड़ा हुआ है तो वहीं पांचवा दिन भाई दूज के रूप में मनाया जाता है। असल में उत्तर भारत में इस त्यौहार की शुरुआत दशहरे के साथ ही हो जाती है जिसमें रामायण की कथा को नाटक के रूप में प्रदर्शित किया जाता है जो कई रातों तक चलता है और इसका अंत बुराई पर अच्छाई की जीत दिखाते हुए होता है। दिवाली का त्यौहार नए कपड़े पहनकर, मिठाइयां खाकर, पटाखे जलाकर मनाया जाता है। इसके साथ ही यहां जुआ खेलने की भी अनोखी प्रथा है।

उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों में एक बर्तन में दूध भरकर उसमें चांदी का सिक्का डाला जाता है और पूजा के बाद सिक्के से इस दूध का छिड़काव पूरे घर में किया जाता है, यह शुभ माना जाता है। कहीं-कहीं लोग अपने अस्त्रों-शस्त्रों की पूजा भी करते हैं।

उत्तर भारत में दिवाली

उत्तर भारत के हरियाणा में दिवाली पर लोग घरों की पुताई करके उसपर अहोई माता की तस्वीर बनाते हैं और अहोई पर घर के हर सदस्य का नाम भी लिखा जाता है। घर को दीयों से सजाने के बाद टोने के रूप में 4 दीये चौराहे पर रख देते हैं।

दक्षिण भारत में दिवाली

उत्तर भारत की तरह दक्षिण में 5 दिनों तक दिवाली नहीं मनाई जाती, यहां केवल यह 2 दिन का पर्व होता है। पहले दिन नरक चतुर्दशी को यहाँ लोग पारंपरिक तरीके से स्नान यानी तेल से स्नान करते हैं और दूसरे दिन दिवाली को घर के आँगन को साफ करके, दिए जलाकर, रंगोली बनाकर खुशियां मनाते हैं। पहले दिन तेल में स्नान करने के पीछे यह कथा मानी जाती है कि भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर राक्षस को मार कर खून के धब्बे हटाने के लिए तेल से स्नान किया था, इसीलिए इस दिन तेल से नहाना शुभ माना जाता है।

दिवाली वाले दिन एक अनोखी परंपरा जो मनाई जाती है वह है ‘थलाई दिवाली।’ थलाई दिवाली के अनुसार नवविवाहित जोड़े लड़की के घर जाते हैं जहां उनका खूब आदर सत्कार होता है और घर के सभी बड़े आशीर्वाद एवं उपहार देते हैं। फिर वह जोड़ा दिवाली के शगुन के लिए एक पटाखा चलाता है और सभी लोग मिलकर मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए जाते हैं।

दक्षिण भारत में दिवाली

आंध्रप्रदेश में हरिकथा का संगीतमय बखान होता है और सत्यभामा की मिट्टी की मूर्तियों की पूजा होती है। वहीं कर्नाटक में पहला दिन अश्विजा कृष्ण और दूसरा दिन पदयमी बाली नाम से प्रचलित है। दूसरे दिन राजा बली से संबंधित कहानियों का उत्सव होता है और महिलाएं गोबर से घर को लीपकर, रंगोली बनाकर दीयों से सजाती हैं।

पूर्वी भारत में दिवाली

भारत के पूर्वी हिस्से में भी दिवाली की अनोखी परंपराएं देखने को मिलती हैं। पश्चिम बंगाल में तो इस त्यौहार की धूम 15 दिन पहले से ही शुरू हो जाती है। रंगोली और दीयों से घर सजाने के बाद आधी रात में लोग यहां मां काली की पूजा-अर्चना भी करते हैं। बिहार और झारखंड तक पहुंचते-पहुंचते दिवाली का रूप होली जैसा हो जाता है क्योंकि पूजा के साथ यहां पारंपरिक गीत और नृत्य को भी बहुत महत्व दिया जाता है। एक दूसरे से गले मिलना, मिठाईयां बांटना, पटाखे छोड़ना और महालक्ष्मी एवं महाकाली की पूजा करके त्यौहार मनाना यहाँ की विशेषता है।

पूर्वी भारत में दिवाली

उत्तर पूर्वी क्षेत्रों में दिवाली की रात तंत्र साधना के लिए भी उपयुक्त मानी जाती है, इसलिए इस विद्या को मानने वाले लोग इस दिन कई तरह की साधना करते हैं। यहां दीप जलाकर, पारंपरिक व्यंजन बनाकर, पटाखे छोड़कर त्यौहार मनाते हैं। यहां एक और मान्यता घरों को रोशनी से सजाने के बाद दरवाजे खुले रखने की भी है क्योंकि ऐसा माना जाता है इस दिन देवी लक्ष्मी घर में प्रवेश करती हैं और अगर आपके घर में अंधेरा होगा या दरवाजा बंद होगा तो मां लक्ष्मी आपके घर में नहीं आएंगी।

पश्चिमी भारत में दिवाली

अब हम आपको बताएंगे कि पश्चिमी भारत में दीपावली का उत्सव कैसे मनाया जाता है। भारत का यह हिस्सा व्यापार के लिए प्रसिद्ध है, इसीलिए यहां देवी लक्ष्मी की पूजा और धूमधाम से उनका स्वागत किया जाता है। यहां उद्योग या कार्यालय खोलना, संपत्ति खरीदना,  विवाह समारोह का आयोजन करना, किसी भी काम का शुभारंभ करना इस दिन शुभ माना जाता है। दिवाली की रात को घरों को देसी घी के दीयों से सजाया जाता है और अगले दिन दीए की लौ से काजल इकट्ठा किया जाता है जिसे महिलाएं अपनी और बच्चों की आंखों में लगाती हैं। यह वहां की शुभ और अनोखी प्रथा है, ऐसा माना जाता है कि इस प्रकार से घर में सुख-समृद्धि आती है। गुजरात में एक रात पहले ही लोग रंगोली बनाकर अपने घर को सजा लेते हैं और अपने घरों में देवी के चरणों के निशान भी बनाते हैं। अब ये माता के चरणों के निशान बाजार में भी आसानी से उपलब्ध होने लगे हैं। पश्चिमी भारत के कई हिस्सों में दिवाली को नए साल के रूप में भी मनाया जाता है।

पश्चिमी भारत में भी दीपावली का उत्सव 5 दिनों तक मनाया जाता है लेकिन महाराष्ट्र में यह केवल चार दिनों का पर्व है। वसुर बरस नाम से पहला दिन गाय और बछड़े के पूजन से संबंधित है, दूसरे दिन धनतेरस होती है जिसमें व्यापारी वर्ग बही-खाते का पूजन करते हैं। अगले दिन नरक चतुर्दशी पर उबटन करके सूर्योदय से पहले स्नान करने की प्रथा है और स्नान के बाद परिवार सहित मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं। फिर चौथे दिन दीपावली मनाई जाती है जिसमें मां लक्ष्मी का पूजन होता है। यहां पर करंजी, चकली, लड्डू, सेव जैसे पारंपरिक व्यंजन भी बनते हैं।पश्चिमी भारत में दिवाली

गोवा जैसे सुंदर शहर की दिवाली भी उतनी ही सुंदर होती है। यहां पारंपरिक रूप से नृत्य और संगीत पर काफी बल दिया जाता है। बाकी परंपराएं जैसे माँ लक्ष्मी का पूजन, रंगोली, बनाना, दीये जलाना, पटाखे फोड़ना यहाँ अन्य जगहों की तरह ही है।

मध्य भारत में दिवाली

इस क्षेत्र में मुख्यतः दो ही राज्य आते हैं जो हैं, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़। यहां भी दीपावली का उत्सव 5 दिनों तक मनाया जाता है यहां के आदिवासियों में दीपावली की काफी धूम रहती है जिसमें स्त्री-पुरुष नृत्य करते हैं और एक दूसरे के बीच दीपदान की भी प्रथा है। यहां धनतेरस के दिन यमराज के नाम का भी एक दिया जलाया जाता है और उसे घर के मुख्य द्वार पर रखकर प्रार्थना की जाती है कि मृत्यु का प्रवेश हमारे घर में ना हो। मध्य भारत में भी रंगोली बनाई जाती है लेकिन उससे ज्यादा यहां मांडना बनाने की परंपरा है। दशहरे के बाद से ही त्यौहार की धूम शुरू हो जाती है। घरों की सफाई, पुताई कर घर को सजाया जाता है। यहां मोर पंख और दीयों से घर को सजाया जाता है। बाजारों में मां लक्ष्मी की मूर्ति, विभिन्न रंग बिरंगे सजावट के सामान, लाइट वाली लड़कियां और खानपान की सामग्री कई दिन पहले से ही सज जाती है।

मध्य भारत में दिवाली