Story of Diwali in Hindi
कार्तिक मास की अमावस्या को मने जाने वाले त्यौहार को दीपावली कहते हैं। दिवाली किसी एक धर्म का नहीं बल्कि पूरे भारत का त्यौहार है। रौशनी का यह पर्व अंधकार पर प्रकाश और बुराई पर अच्छाई व सच्चाई का प्रतीक है। लेकिन यह जानना ज़रूरी है कि आखिर दिवाली मनाई क्यों जाती है, इसका इतिहास क्या है और यह इतनी महत्वपूर्ण क्यों है।
क्यों मनाते हैं दिवाली, जानिए इसका महत्व और इतिहास
दिवाली का त्यौहार सभी लोग धूमधाम से मनाते हैं लेकिन क्यों मनाई जाती है यह दिवाली इसका जवाब आज हम आपको देंगे। दीपावली क्यों मनाई जाती है इसके साथ कई कथाएं जुड़ी हैं जैसे भगवान श्री राम के अयोध्या से वापस आने की कथा, माता लक्ष्मी के समुद्र मंथन से उत्पन्न होने की कथा, कृष्ण भगवान के नरकासुर का वध करने की और पांडवों को अपना राज्य वापस मिलने की कथा।
कारण चाहे राम पूजा का हो या कृष्ण पूजा का, लक्ष्मी पूजा का हो या काली पूजा का, हर रूप में यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई एवं सत्य पर असत्य की जीत का प्रतीक है। दिवाली पर लक्ष्मी मां की पूजा करने से आपके घर में धन समृद्धि और खुशहाली सदा के लिए बनी रहेगी।
दिवाली पर लोग नए कपड़े पहनते हैं, घर की साफ सफाई करते हैं, रंगोली बनाते हैं, विभिन्न मिठाइयों को एक दूसरे में बांटकर प्यार फैलाते हैं। इसीलिए यह पर्व सभी लोगों को आपस में जोड़कर रखने का भी पर्व है।
दिवाली का महत्त्व
दिवाली के त्यौहार का धार्मिक और आध्यात्मिक के साथ सांस्कृतिक महत्व भी है। प्रकाश का यह पर्व बताता है कि हमें समाज को केवल बाहर से ही प्रकाशित करने की जरूरत नहीं है बल्कि अपने भीतर भी प्रकाश जलाना होगा, अपनी अंतरात्मा को जगाना होगा। दीपावली एक नहीं बल्कि 5 दिनों का पर्व है और इन पांचों दिनों का अलग-अलग महत्व है।
दिवाली का पहला दिन धनतेरस के नाम से मनाया जाता है। इस दिन कुबेर जी और धन्वंतरी जी की पूजा की जाती है। धनतेरस पर लोग बर्तन, सोने और चांदी के सिक्के जैसी वस्तुएं खरीदना शुभ मानते हैं क्योंकि हिंदू धर्म में विश्वास है कि इनके खरीदने से साल भर घर में धन की वृद्धि वर्षा होती रहेगी।
इस त्यौहार के दूसरे दिन को छोटी दीपावली या नरक चतुर्दशी कहते हैं। इस दिन श्री कृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध किया था और इसी खुशी में यह पर्व मनाया जाता है।
तीसरा और मुख्य दिन होता है दीपावली का। कार्तिक अमावस्या की रात को सब लोग दीये, मोमबत्ती और रंगीन झालरों से गहन अंधकार को दूर करके पूरे वातावरण को प्रकाशमय कर देते हैं। इस दिन बुद्धि के देवता गणेश और धन समृद्धि की देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इनकी कृपा होने से सभी इच्छाओं की पूर्ति होगी और सालभर खुशियां घर में आती रहेंगी।
चौथा दिन गोवर्धन पूजा का होता है जो भगवान कृष्ण के इंद्र के गर्व को धराशाई करने के उपलक्ष में मनाया जाता है। इस दिन को बलिप्रदा भी कहते हैं क्योंकि एक दूसरी कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने वामन अवतार में राजा बलि को हराया था।
पांचवा दिन आता है भाई दूज का जिसे यम द्वितीया कहते हैं। यम (मृत्यु के देवता) और उनकी बहन यामी के स्नेह भरे रिश्ते को सम्मान देते हुए सभी भाई बहन मिलकर यह त्यौहार मनाते हैं। भाई दूज के साथ दीपावली का त्यौहार संपन्न हो जाता है
दिवाली का इतिहास | History of Diwali
दिवाली का इतिहास हमारे देश के इतिहास से भी पुराना है। दिवाली का त्योहार प्राचीन काल से ही भारत में मनाया जाता है। जहां कुछ लोग इसे फसल के त्योहार के रूप में मनाते हैं तो कुछ लोग श्री राम के वनवास के 14 वर्ष पूरे होने की खुशी में। हमारे देश की विविधता का रंग इस त्यौहार में भी दिखता है, जहां कुछ लोग माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु के विवाह समारोह के रूप में इस त्यौहार का जश्न मनाते हैं तो वहीं बंगाल और उड़ीसा की तरफ काली माता (देवी शक्ति) की पूजा करके इस त्यौहार को मनाया जाता है।
दिवाली की पौराणिक कथा इस प्रकार है कि देवताओं और दानवों के बीच समुद्र मंथन से देवी लक्ष्मी क्षीरसागर से बाहर आई थीं। उनके अवतरित होने का कारण ब्रह्मांड में मानवता का उद्धार करना और धन एवं समृद्धि प्रदान करना था। इन्हीं के स्वागत एवं सम्मान के लिए लोगों ने खुशियां मनाई, मिठाइयां बांटी और माता लक्ष्मी की विधि पूर्वक पूजा की।
देवी लक्ष्मी ने बताया कि वे आलसी, कामचोर, दूसरों से ईर्ष्या करने वाले, गंदगी से रहने वाले, घमंडी या किसी भी बुरी आदत वाले व्यक्ति के पास नहीं रहती हैं। इसीलिए दीपावली के त्योहार पर हम सफाई करके, पूजा पाठ करके, एक दूसरे से सारे गिले-शिकवे मिटाकर गले मिलकर देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं।
दिवाली की ऐतिहासिक उत्पत्ति के सटीक कारण को पहचानना संभव नहीं है। इसीलिए मन में श्रद्धा और विश्वास के साथ किसी भी कारण को सत्य मानें लेकिन त्यौहार की गरिमा और प्रसन्नता का ख्याल रखें।
दिवाली मनाने के कारण | Story of Diwali
देवी लक्ष्मी के जन्म और विवाह का दिन – समुद्र मंथन के दौरान इसी दिन माता लक्ष्मी का जन्म हुआ था और भगवान विष्णु ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया था। जगत के स्वामी और माता लक्ष्मी के विवाह का जश्न सभी अपने घरों को रोशन करके मनाते हैं।
माता लक्ष्मी का जेल से छूटना – कार्तिक अमावस्या के दिन भगवान विष्णु ने अवतार लेकर लक्ष्मी माता को राजा बलि की जेल से रिहा करवाया था। इसी उपलक्ष्य में सब लोग खुशियां मनाते हैं और माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं।
श्री राम का अयोध्या वापस पधारना – दिवाली को लेकर सबसे प्रसिद्ध कथा है भगवान श्री राम की। श्री राम, सीता माता और अनुज लक्ष्मण के साथ 14 साल का वनवास पूरा करके और रावण का वध करके अयोध्या वापस पधारे थे। उनके आने की खुशी में अयोध्यावासियों ने अपने-अपने घरों को दीपक से सजाया था। पूरी नगरी रोशनी और प्रकाश से जगमगा उठी थी और तभी से हमारे देश में दीपावली का पर्व मनाया जाने लगा।
श्री कृष्ण ने किया नरकासुर का वध – दीपावली के एक दिन पूर्व श्री कृष्ण भगवान ने नरकासुर नामक राक्षस को मारा था। श्री कृष्ण के भक्त आज भी यह त्यौहार इसी याद में धूमधाम के साथ मनाते हैं।
पांडवों का पूरा हुआ था वनवास – महाभारत काल की बात करें तो कार्तिक अमावस्या का ही दिन था, जब पांडवों ने भी अपना 12 वर्ष का वनवास पूरा किया था। जब वे अपनी नगरी में वापस आए तो लोगों ने घी के दीए जलाकर घरों को सजाया और उनका स्वागत किया था।
विक्रमादित्य के राज्याभिषेक का दिन – भारत देश के महान राजा विक्रमादित्य का राजतिलक भी कार्तिक अमावस्या के दिन ही हुआ था। आगे चलकर इन्होंने दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य पर राज किया, इसीलिए इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है।
जैन धर्म के लिए महत्वपूर्ण दिन – जैन धर्म के लोगों में भी दीपावली के दिन के लिए विशेष आस्था है क्योंकि उनकी आदरणीय आधुनिक जैन धर्म के संस्थापक ने इसी दिन निर्वाण प्राप्त किया था।
स्वर्ण मंदिर की रखी गई थी नींव – सिक्ख वर्ग भी दीपावली का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाता है। उनके गुरु अमरदास जी ने इस दिन को रेड लेटर डे कहा था और इसीलिए सभी सिख अपने गुरु का आशीर्वाद इस दिन जरूर लेते हैं। सिक्खों के प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास भी इसी दिन 1577 में हुआ था।
किसानों के उत्साह का पर्व – यह त्यौहार किसान वर्ग के लिए भी खुशियां लेकर आता है। भारत कृषि प्रधान देश है और इसीलिए हर त्यौहार एक विशेष फसल को समर्पित होता है। दीपावली के समय खरीफ फसल खेतों में लहलहा रही होती है जो कि किसानों की समृद्धि की सूचक होती है। इस दिन अंकुरित गेंहू और ज्वार की पूजा करनी चाहिए।
हिंदुओ का नव वर्ष – दीपावली के दिन से ही हिंदू व्यवसायी अपना नया वर्ष आरंभ करते हैं। इसी दिन अपने खातों की नई किताबें शुरू करते हैं और पुराने सभी ऋणों को चुका देते हैं। बही खातों की पूजा करना भी इस दिन शुभ माना जाता है।
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