Ganesh Visarjan Dates & Ganesh Chaturthi Story below :
भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश जी का जन्मदिन मनाया जाता है जिसे गणेश चतुर्थी या गणेशोत्सव नाम से जाना जाता है। श्री गणेश “आरंभ” का प्रतीक हैं। भारतीय संस्कृति में किसी भी कार्य को सफलतापूर्वक पूर्ण करने के लिए भगवान गणेश का सर्वप्रथम पूजन किया जाता है। इन्हीं विघ्नहर्ता भगवान गणेश जी की पूजा का उत्सव है “गणेश चतुर्थी” जो 10 दिनों तक मनाया जाता है और ग्यारहवें दिन गणेश जी की मूर्ति के विसर्जन के साथ इस उत्सव का समापन होता है। आइए अब जानते हैं क्यों मनाया जाता है गणेश चतुर्थी का उत्सव।
Dates & Timings for Ganesh Utsav 2020 | Ganesh Visarjan Dates
Ganesha Chaturthi on Saturday, August 22, 2020
Madhyahna Ganesha Puja Muhurat – 11:06 AM to 01:42 PM Duration – 02 Hours 36 Mins
Ganesha Visarjan on Tuesday, September 1, 2020 (Ganesh Visarjan Dates)
Time to avoid Moon sighting – 09:07 AM to 09:26 PM Duration – 12 Hours 19 Mins
Chaturthi Tithi Begins – 11:02 PM on Aug 21, 2020
Chaturthi Tithi Ends – 07:57 PM on Aug 22, 2020
क्यों मनाई जाती है गणेश चतुर्थी। Why Ganesh chaturthi is celebrated
गणेश जी का जन्मदिन ही गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। गणेश उत्सव मनाने के पीछे लोगों की अलग-अलग मान्यताएं भी जुड़ी हैं लेकिन इस पर्व के साथ मुख्यतः दो कथाएं जुड़ी हैं जो अत्यधिक प्रचलित हैं।
कथा 1- सृष्टि का आरंभ हो रहा था तब सभी देवताओं में यह बहस छिड़ गई कि सर्वश्रेष्ठ देवता कौन सा है। आपस में इसका निश्चय न हो पाने पर सभी देवता एकत्रित होकर भगवान शिव और माता पार्वती के पास गए। तब भगवान शिव ने उनके लिए एक प्रतियोगिता का आयोजन किया और कहा सभी देवता पृथ्वी की तीन परिक्रमाएं लगाएंगे, जो यह कार्य सबसे पहले पूर्ण कर लेगा उसे ही सर्वश्रेष्ठ माना जाएगा। सभी देवता अपने-अपने वाहन लेकर तैयार हो गए। लेकिन जैसा कि हम सब जानते हैं भगवान गणेश का वाहन चूहा है जो कि बहुत छोटा है और भगवान का शरीर भारी भरकम है, इसीलिए उन्होंने एक युक्ति सोची और अपनी माता-पिता की तीन परिक्रमा करके उनके चरण स्पर्श कर लिए। यह देखकर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए और बोले तुम तो बहुत ही बुद्धिमान बालक हो। तुमने अपने माता-पिता की प्रदक्षिणा करके पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से भी अधिक पुण्य कमाया है और इसीलिए आज से तुम सर्वप्रथम पूजे जाओगे। तभी से किसी भी कार्य की शुरूआत करने से पहले गणेश भगवान का पूजन किया जाता है और बाद में अन्य देवताओं की पूजा की जाती है।
कथा 2 – एक बार भगवान गणेश अपने वाहन चूहे पर सवारी कर रहे थे। तभी अचानक वे उससे फिसल कर गिर गए। यह देखकर चंद्र देव हंसने लगे। चंद्र देव को मजाक बनाता देख गणेश भगवान को गुस्सा आ गया और उन्होंने चंद्रमा को श्राप दे दिया कि जो भी तुम्हें देखेगा उसे पाप लगेगा इसीलिए लोग तुम्हारे दर्शन करना बंद कर देंगे। यह सुनकर चंद्र देव को अपने किए पर पछतावा हुआ। तब वे अन्य देवताओं से सहायता मांगने गए और फिर सभी देवता मिलकर भगवान गणेश से क्षमा मांगने आए। जब भगवान गणेश ने देखा कि चंद्र देव को अपनी भूल का एहसास हो चुका है तब उन्होंने कहा – “मैं अपने श्राप को वापस तो नहीं ले सकता लेकिन इसे कुछ हद तक कम कर सकता हूं।” तब उन्होंने कहा कि केवल चतुर्थी के दिन लोग आपके दर्शन नहीं करेंगे और यदि किसी ने आप के दर्शन कर लिए तो उसे पाप लगेगा या उस पर झूठे आरोप लगेंगे। इससे बचने के लिए चतुर्थी को मेरी पूजा करने वालों को शुभ फल की प्राप्ति होगी। तभी से चतुर्थी के दिन गणेश पूजा का विशेष महत्व माना जाता है।
गणेश चतुर्थी की पूजन विधि
चतुर्थी के दिन प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर शुभ मुहूर्त में घर की सही दिशा में गणपति जी स्थापित करें। ध्यान रखें कि जिस जगह गणपति जी स्थापित करें, वहां उनकी प्रतिमा के नीचे एक साफ-सुथरा लाल रंग का वस्त्र बिछा लें। गणेश जी को नए वस्त्र पहनाकर तिलक लगाएं। मोदक मिठाइयां व फलों का भोग लगाएं और पुष्प अर्पित करें। मूर्ति के आगे रोली से स्वास्तिक के चिन्ह बनाएं। उसके बाद गणेश जी की आरती करें और घर के सभी सदस्यों व आस पड़ोस में आरती कर प्रसाद वितरित करें। इसी तरह से 10 दिन तक भगवान गणेश की पूजा अर्चना श्रद्धा भाव से करते रहें और ग्यारहवें दिन यानी कि अनंत चतुर्दशी को गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन करें। महानगर में रहने के कारण जिन लोगों को नदी या तालाब उपलब्ध नहीं हो पाते हैं वे लोग जमीन में गड्ढा खोदकर उसमें पानी भर कर भी मूर्ति स्थापित कर सकते हैं। यदि आप की मूर्ति बहुत छोटी है तो आप किसी बड़े बर्तन में पानी भरकर भी गणेश मूर्ति का विसर्जन कर सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे विसर्जन के बाद इस जल को कोई अपवित्र हाथों से ना छुए और पैर ना लगाएं। विसर्जन के कुछ समय पश्चात इस जल को अपने गमले या किसी पेड़ की जड़ में चढ़ा सकते हैं।
क्यों ज़रूरी है गणेश विसर्जन
धार्मिक मान्यताओं और पौराणिक ग्रंथों के अनुसार वेदव्यास जी ने भगवान गणेश को महाभारत की कथा सुनाई थी। यह कथा 10 दिनों तक चली थी जिसे सुनाते हुए वेदव्यास जी ने अपने नेत्र बंद रखे थे। ग्यारहवें दिन जब उन्होंने आंखें खोलीं तो देखा भगवान गणेश के शरीर का तापमान बढ़ चुका है।
वेदव्यास जी ने तुरंत गणेश जी को पास के एक कुंड में स्नान करवाया और तब जाकर उनके शरीर का तापमान कम हुआ।
इसीलिए आज भी गणेश स्थापना करके हम दस दिन तक गणपति बप्पा की पूजा करते हैं और ग्यारहवें दिन गणेश जी की मूर्ति नदी में विसर्जित कर दी जाती है। गणेश विसर्जन इस बात का भी प्रतीक माना जाता है कि मिट्टी का बना यह शरीर अंत में मिट्टी में ही मिल जाना है। जब हम गणपति बप्पा को स्थापित करते हैं तो उनके प्रति मोह उत्पन्न हो जाता है जिसे विदा करते समय छोड़ना पड़ता है। अतः विसर्जन यह भी सीख देता है कि हमें जीवन में मोह त्यागकर आगे बढ़ना है।
गणेश विसर्जन की विधि | Ganesh Visarjan Dates & Vidhi
वैसे गणपति जी का विसर्जन ग्यारहवें दिन यानि कि अनंत चतुर्दशी के दिन किया जाता है। लेकिन जो लोग किसी कारणवश 10 दिन तक गणपति रखने में असमर्थ होते हैं वे अपनी सुविधानुसार डेढ़ दिन, 4 दिन 5 दिन 7 दिन या 9 दिन में भी गणपति जी का विसर्जन कर देते हैं। जिन लोगों ने डेढ़ दिन के गणपति रखे थे, उन्होंने इनका विसर्जन कर दिया होगा।
गणपति जी के विसर्जन के लिए नियम कुछ इस प्रकार हैं –
सबसे पहले गणपति जी की पूजा अर्चना करें। उन्हें मोदक और अन्य मिठाई व फलों का भोग लगाएं। विदाई के लिए बप्पा को नए वस्त्र पहनाकर तिलक करें। एक लाल कपड़े में सुपारी, दूर्वा, मिठाई और कुछ पैसे बांधकर गणपति जी के पास में रख दें। आरती और जयकारे लगाते हुए, नाचते गाते हुए बप्पा को विसर्जन के स्थान तक ले जाएं। गणपति जी की प्रतिमा को तीन बार जल में डुबोकर प्रवाहित कर दें और अपनी भूल के लिए क्षमा प्रार्थना करें। हाथ जोड़कर गणपति बप्पा से अनुग्रह करें कि अगले बरस फिर हमारे घर पधार कर हमारे कष्टों को दूर करें।
गणेश विसर्जन तारीख और मुहूर्त। गणेश विसर्जन Dates। Ganesh Visarjan Dates
अनंत चतुर्दशी इस बार 1 सितंबर 2020 यानी कि मंगलवार की पड़ रही है। वैसे तो आप पूरे दिन में कभी भी विसर्जन कर सकते हैं लेकिन सुबह 6:00 से 7:00 बजे, 9:00 से 10:30 और 1:30 से 3:00 बजे का समय अशुभ है। इसके अलावा यदि आप किसी भी समय में गणपति विसर्जन करते हैं तो यह शुभ मुहूर्त में ही संपन्न होगा।
गणेश चतुर्थी का इतिहास। History of Ganesh chaturthi
गणेश चतुर्थी का उत्सव प्रारंभ में महाराष्ट्र में मनाया जाता था लेकिन धीरे-धीरे पूरे देश में इसकी धूम मचने लगी है। यह पर्व काफी प्राचीन समय से हमारे देश में मनाया जा रहा है लेकिन सन 1893 से पूर्व यह अक्सर घरों में ही मनाया जाता था। लेकिन 1893 में बाल गंगाधर तिलक जी ने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध देशवासियों को एकत्र करने के लिए सामूहिक स्तर पर इस उत्सव का आयोजन किया जिसमें पांडाल लगाकर गणपति जी स्थापित किए गए। देश को एकत्र करने के लिए बाल गंगाधर तिलक ने गणेश चतुर्थी को एक भव्य रूप दिया था, वह परंपरा आज भी चल रही है।
भारत में गणेश पांडाल। Ganesh Pandals in India
भारत में गणेश चतुर्थी के अवसर पर पांडालों की साज-सज्जा और रौनक देखने लायक होती है। पहले महाराष्ट्र तक इन पांडालों की शोभा सीमित थी लेकिन आज देश के लगभग हर एक हिस्से में गणेश पांडाल सजाए जाते हैं।
हैदराबाद का पांडाल – इस बार हैदराबाद का पांडाल गणेश जी की सबसे ऊंची मूर्ति के कारण प्रसिद्ध हो रहा है। हैदराबाद के पांडाल में गणेश जी की 61 फीट ऊंची मूर्ति स्थापित की गई हैं।
पटना का पांडाल – उत्तर भारत के पटना जैसे शहरों में भी गणेश पांडाल की रौनक देखने लायक है।
मुंबई और महाराष्ट्र के पांडाल – गणेश पांडाल की बात हो और लालबागचा राजा का नाम ना आए तो यह असंभव सी बात है। इसके साथ ही गणेश गली चा राजा, खेतवाड़ी और जीएसबी पांडाल भी मुख्य हैं।