Story of Dusshera in Hindi
जानें क्यों और कैसे मनाया जाता है दशहरा, क्यों मनाया जाता है दशहरा, दशहरा क्यों मनाया जाता है, दशहरा का महत्व , भारत में विजयदशमी दशहरा, किस दिन मनाया जाता है दशहरा
क्यों और कैसे मनाया जाता है दशहरा | Story of Dusshera – दशहरे का त्यौहार सभी लोग धूमधाम से मनाते हैं, लेकिन आज हम आपको बताएंगे कि दशहरा कैसे मनाया जाता है। किसी भी त्यौहार को मनाने के पीछे क्या कारण है और क्या सही विधि है, यह पता होना ज़रूरी है। त्यौहारों का देश कहे जाने वाले भारत में हर त्योहार कोई न कोई विशेष सीख या शिक्षा अवश्य देता है, जिसमें से दशहरा सीख देने के मामले में पहले नंबर पर आता है। दशहरा शब्द दश और हर की संधि से बना है इसलिए शाब्दिक तौर पर भी इसका अर्थ बनता है दस बुराइयों को हर लेना यानी दस बुराइयों से छुटकारा पा लेना।
क्यों और कैसे मनाया जाता है दशहरा:
कब मनाया जाता है दशहरा
आश्विन (क्वार) मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा मनाया जाता है। इस बार 2019 में यह पर्व 08 अक्टूबर को मनाया जाएगा और पूजा के लिए उपयुक्त मुहूर्त इस प्रकार है :-
अवसर – दशहरा 2020 दिनांक – 26-10-20
विजय मुहूर्त- 13:55 से 14:40
अपराह्न पूजा समय- 13:11 से 15:24
दशमी तिथि आरंभ- 07:41 (25 अक्तूबर)
दशमी तिथि समाप्त- 08:59 (26 अक्तूबर)
कैसे मनाया जाता है दशहरा
हमारे देश भारत में दशहरे का विशेष महत्त्व है। देशभर में यह त्यौहार उत्साह के साथ मनाया जाता है। जहाँ उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में यह त्यौहार श्री राम और मां दुर्गा के पराक्रम से जुड़ा है तो वहीं पश्चिम बंगाल, गुजरात और पंजाब जैसे राज्यों में विशेषतः दुर्गा पूजा की धूम रहती है। कहीं गरबा खेलकर, कहीं नौ दिनों तक उपवास रखकर तो कहीं महिषासुर के वध का प्रसंग दिखाते हुए नवरात्री का उत्सव मनाया जाता है जिसका समापन दशहरे के पर्व के साथ होता है। इस दिन महाराष्ट्र में सिलंगण मनाया जाता है जो एक सामाजिक महोत्सव है। यहाँ प्रकृति को सम्मान देते हुए गांव की सीमा से दूर जाकर शमी वृक्ष के पत्ते तोड़ कर लाते हैं जिन्हें सोने (स्वर्ण) का प्रतीक मानकर एक-दूसरे में बांटा जाता है।
दशहरे पर जगह-जगह मेलों का आयोजन होता है जिसमें खाने-पीने की चीज़ें, मौज मस्ती का सामान और विभिन्न झूलों का आनंद उठाया जा सकता है। लेकिन इन मेलों का विशेष आकर्षण रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतले होते हैं जिनको जलाकर बुराई का अंत किया जाता है। भारत में नवरात्रों के आरंभ से ही यहां के प्राचीनतम नाटक रामलीला का आयोजन शुरू हो जाता है जिसके दसवें दिन (दशहरे वाले दिन) भगवान राम दशानन रावण का वध करते हैं और इसके साथ ही रामलीला का समापन हो जाता है। दशहरे के ही दिन नौ देवी की प्रतिमाओं का विसर्जन करके नवरात्रि का उत्सव भी संपन्न हो जाता है।
क्यों मनाया जाता है दशहरा | Story of dusshera
इस खास उत्सव को मनाने के पीछे क्या कारण हैं, यह जानना भी आपके लिए महत्वपूर्ण है। इसीलिए अब हम बताते हैं कि दशहरा क्यों मनाया जाता है। दशहरे का संबंध श्रीराम और माँ दुर्गा के विजय-प्रसंग से है। इसी खुशी के उपलक्ष्य में इसका महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है। दशहरा बुराई पर अच्छाई की, असत्य पर सत्य की और अंधकार पर उजाले की जीत का प्रतीक है। इस दिन से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। दशहरे के ही दिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने रावण का वध करके देवी सीता को बंधन मुक्त किया था, वहीं देवी पुराण दुर्गा सप्तशती के अनुसार इसी दिन अंबे मां ने महिषासुर नामक राक्षस को मार कर देवताओं को भय मुक्त किया था। इसी कारण दशहरे के पर्व को विजयदशमी भी कहते हैं।
भारत में विजयदशमी दशहरा का महत्व | Story of dusshera
चाहे इस त्योहार को श्री राम-कथा के साथ जोड़ें या महिषासुर और महिषासुर-मर्दिनी के प्रसंग के साथ जोड़ें। दोनों ही रूपों में इस दिन का विशेष महत्व है क्योंकि यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीकात्मक दिन है। इस दिन हमें अपने अंदर की बुराइयों जैसे ईर्ष्या, पाप, लोभ (लालच), क्रोध, काम, मद, अहंकार, मोह और आलस को त्याग देना चाहिए क्योंकि अहंकार में डूबा व्यक्ति जो इन बुराइयों को अपने अंदर समाए होता है, उसका एक दिन अवश्य ही भयावह अंत होता है। हमारी पौराणिक कथाओं के खलनायक रावणा और महिषासुर विद्वान होते हुए भी बुराई के कारण मारे गए। इसीलिए इससे सीख लेते हुए हमें अपने जीवन को सही दिशा देनी चाहिए।
दशहरे का महत्त्व अब केवल भारत में ही सीमित नहीं है बल्कि अब दशहरे का त्यौहार नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे देशों में भी बड़े उत्साह के साथ मनाया जाने लगा है।
दशहरे की पूजन विधि
हिंदू धर्म की मान्यता अनुसार इस दिन राजा दशरथ के चारों पुत्र ; श्री राम, भारत जी, लक्ष्मण जी और शत्रुघ्न का पूजन किया जाता है। दशहरे के दिन प्रातः काल उठते ही स्नान आदि नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर गाय के गोबर से गोल बर्तन जैसे चार पिंड बनाने चाहिए। ये श्री राम और उनके भाइयों के प्रतीक होते हैं। इन बर्तनों में भीगे हुए धान और चांदी रखकर उन्हें किसी साफ वस्त्र से ढक देना चाहिए। फिर उनकी गंध, पुष्प, फल, द्रव्य, चंदन आदि से श्रद्धा सहित पूजा करें। विधिपूर्वक पूजन करने के बाद ब्राह्मण भोज का आयोजन करें और उसके बाद स्वयं परिवार सहित भोजन ग्रहण करें। इस विधि से दशहरा पूजा करें तो पूरे साल आप के जीवन में खुशियां और सुख आते रहेंगे।
भारतीय संस्कृति हमेशा से ही शौर्य (श्री राम) और शक्ति (माँ दुर्गा) की उपासक रही है, इसीलिए दशहरे के दिन कई घरों में अस्त्रों की पूजा भी की जाती है।
तो इस बार आप भी परिवार के साथ दशहरे के महत्त्व को समझते हुए इस शुभ पर्व का आनन्द उठाएं।
हमारी और से आप सभी को दशहरे की शुभकामनाएं!!