Durga ke 9 roop ki kahani
माँ दुर्गा के 9 रूपों की आराधना का पर्व नवरात्रि आरंभ हो चुका है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तिथि तक माँ भगवती की उपासना कर, व्रत कर, जागरण कर भक्तगण माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। पूरे भारत देश में विशेषकर उत्तर भारत में नवरात्रि की रौनक और पूजा पंडाल देखने लायक होते हैं। नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा के 9 रूपों की 9 दिनों तक पूजा की जाती है, इसके साथ ही अगर इन 9 दिनों तक नवग्रहों की भी पूजा की जाए तो अनिष्ट प्रभाव शांत रहते हैं एवं रोग और शोक से मुक्ति मिलती है। नवरात्रि शब्द 9 की संख्या से बना है जो कि एक रहस्यात्मक बोध कराता है। माना जाता है कि यह संख्या अखंड होती है और जिसका ब्रह्म स्वरूप कभी खंडित नहीं किया जा सकता। विभिन्न कामनाओं के लिए भक्तगण नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना और पूजन करते हैं। आइए हम बताते हैं आपको इन नौ रूपों की कथा और कौन से हैं यह नौ रूप।
दुर्गा के 9 रूप कौनसे हैं। Durga ke 9 roop ki kahani।
प्रथम दुर्गा मां शैलपुत्री
नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री का पूजन किया जाता है। पर्वतराज हिमालय के घर देवी ने पुत्री के रूप में जन्म लिया और इसी कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। प्रकृति का प्रतीक मां शैलपुत्री जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता का सर्वोच्च शिखर प्रदान करती हैं। शैलपुत्री के दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल रहता है तथा इनका वाहन वृषभ (बैल) है। मां के इस रूप को लाल और सफेद रंग की वस्तुएं पसंद होने के कारण इस दिन लाल और सफेद पुष्प एवं सिंदूर अर्पित करें और दूध की मिठाई का भोग लगाएं। मां शैलपुत्री का पूजन घर के सभी सदस्य के रोगों को दूर करता है एवं घर से दरिद्रता को मिटा संपन्नता को लाता है। इनकी पूजा का मंत्र है – “या देवी सर्वभूतेषु प्रकृति रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।”
द्वितीय दुर्गा मां ब्रह्मचारिणी
वह परम ब्रह्म जिसका न आदि है न कोई अंत, उसी ब्रह्म सरूपा चेतना का स्वरूप है मां ब्रह्मचारिणी। नवरात्रि के दूसरे दिन इन देवी की पूजा की जाती है। नारद मुनि के कहने पर इन देवी ने शिवजी को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी और उन्हें ब्रह्म ज्ञान प्राप्त हुआ था, इसीलिए इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। जो भक्त ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा करते हैं, उनको असीमित व अनंत शक्तियों का वरदान प्राप्त होता है। मां ब्रह्मचारिणी के एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में जप की माला रहती है। देवी दुर्गा का यह स्वरूप हमें संघर्ष से विचलित हुए बिना सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। मां ब्रह्मचारिणी को कमल और गुड़हल के पुष्प अर्पित करने चाहिए तथा चीनी, मिश्री और पंचामृत का भोग लगाना चाहिए। इससे देवी प्रसन्न होकर हमें दीर्घायु एवं सौभाग्य प्रदान करती हैं। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का मंत्र है – “या देवी सर्वभूतेषु सृष्टि रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।”
तृतीय दुर्गा चंद्रघण्टा
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा का पूजन किया जाता है जिनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र होता है। मां चंद्रघंटा के दस हाथ हैं जिनमें कमल का फूल, कमंडल, त्रिशूल, गदा, तलवार, धनुष और बाण है। एक हाथ आशीर्वाद तो दूसरा अभय मुद्रा में रहता है, शेष बचा एक हाथ वे अपने हृदय पर रखती हैं। माता का यह प्रतीक रत्न जड़ित आभूषणों से सुशोभित है और गले में सफेद फूलों की माला शोभित है। इन देवी का वाहन बाघ है। माता का घण्टा असुरों को भय प्रदान करने वाला होता है और वहीं इससे भक्तों को सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। माता का यह स्वरुप हमारे मन को नियंत्रित रखता है। नवरात्रि में मां के इस रूप को दूध और दूध से बने पदार्थों का भोग अर्पित करना चाहिए इनकी साधना का मंत्र है “ओम देवी चंद्रघंटाय नमः।”
चतुर्थ दुर्गा कूष्मांडा
देवी दुर्गा के 9 रूपों में से यह चौथा रूप है। ‘कू’ का अर्थ है छोटा, ‘उष्म’ का अर्थ है ऊर्जा और ‘अंडा’ ब्रह्मांडीय गोला का प्रतीक है। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार जब ब्रह्मांड में अंधकार छा गया था तब इन देवी ने अपनी मंद मुस्कान से पूरे संसार में उजाला कर ब्रम्हांड का निर्माण किया और तभी से इन्हें कूष्मांडा कहा गया। ऐसा माना जाता है कि इन देवी का निवास सूर्यलोक में हैं क्योंकि उस लोक में निवास करने की क्षमता केवल इन्हीं के पास है। मां कुष्मांडा के 8 भुजाएं हैं जिनमें से 7 भुजाओं में वे कमंडल, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत कलश, चक्र और गदा धारण करती हैं और आठवें हस्त में सर्व सिद्धि और सर्व निधि प्रदान करने वाली जपमाला सुशोभित है। नवरात्रि के चौथे दिन देवी कूष्मांडा को मालपुए का भोग लगाकर आप उनकी कृपा प्राप्त कर सकती हैं। माता का यह रूप बौद्धिक विकास के लिए लाभदायक है। इनकी पूजा का मंत्र है “या देवी सर्वभूतेषु तुष्टि रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।”
पंचम दुर्गा मां स्कंदमाता
नवरात्रि के पांचवे दिन देवी स्कंदमाता का पूजन किया जाता है। ब्रह्मांड में व्याप्त शिव तत्व का मिलन जब देवी शक्ति के साथ होता है तो स्कंद का जन्म होता है। इनकी माता होने के कारण ही इन्हें स्कंदमाता कहकर पुकारा जाता है। माता का वर्ण पूर्णत: श्वेत है और यह इनका रूप चतुर्भुज है। ऊपर वाली दाहिनी भुजा में यह षडानन बालरूप स्कंद को पकड़े रहती हैं और ऊपर वाली बाई भुजा से आशीर्वाद देती हैं। नीचे वाली दोनों भुजाओं में माता ने कमल पुष्प धारण किया हुआ है। इनका वाहन सिंह है। इस रूप को पद्मासना नाम से भी जाना जाता है। वात्सल्य विग्रह होने के कारण माता के इस रूप में कोई शस्त्र नहीं होता। इनकी उपासना से भक्तगण मृत्यु लोक में भी परम शांति और सुख प्राप्त कर सकते हैं। देवी का यह रूप ज्ञान का प्रतीक है। इस दिन माता की पूजा करने के बाद केले का भोग अर्पण करने से परिवार में सुख शांति आती है। इनकी पूजा का मंत्र है “या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।”
षष्ठी दुर्गा मां कात्यायनी
कात्यायन ऋषि के गोत्र में जन्म लेने के कारण इन देवी का नाम कात्यायनी पड़ा जिनकी पूजा नवरात्रि के छठे दिन की जाती है। दिव्यता की अति गुप्त रहस्य एवं शुद्धता का प्रतीक यह देवी मनुष्य के आंतरिक सूक्ष्म जगत से नकारात्मकता का नाश कर सकारात्मकता प्रदान करती हैं। चार भुजाओं वाली देवी के इस रूप का वर्ण सुनहरा और चमकीला है। रत्न आभूषण से अलंकृत देवी कात्यायनी का वाहन खूंखार सिंह है जिसकी मुद्रा तुरंत झपट पड़ने वाली होती है। ऊपर वाली दाई भुजा से माता की ऊपर वाली भुजा अभय मुद्रा में होती है तथा नीचे वाली वर मुद्रा में होती है। बाई तरफ की उपरी भुजा से उन्होंने चंद्रहास तलवार धारण की है तो नीचे वाले हाथ में कमल का पुष्प पकड़े रहती है। एकाग्रता से माता की पूजा करने वाले को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। माता की उपासना कर शहद का भोग लगाएं जिससे जीवन में खुशहाली यौवन और संपन्नता बनी रहती है। इन देवी की पूजा का मंत्र है। इनकी पूजा का मंत्र है “या देवी सर्वभूतेषु स्मृति रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।”
सप्तम दुर्गा मां कालरात्रि
भय से मुक्ति प्रदान करने वाली देवी कालरात्रि की पूजा हम नवरात्रि के सातवें दिन करते हैं। इनकी पूजा से प्रतिकूल ग्रहों द्वारा उत्पन्न दुष्प्रभाव और बाधाएं भी नष्ट हो जाती हैं। माता का यह रूप उग्र एवं भयावह है लेकिन अपने भयावह रूप के बाद भी यह भक्तों को शुभ फल प्रदान करती हैं। ये देवी काल पर भी विजय प्राप्त करने वाली हैं। मां कालरात्रि का वर्ण घोर अंधकार की भांति काला है, बाल बिखरे हुए हैं तथा अत्यंत तेजस्वी तीन नेत्र हैं। इनके गले में बिजली की चमक जैसी माला भी होती है। मां के चार हाथों में से दो हाथ अभय मुद्रा और वर मुद्रा में होते हैं तथा शेष दोनों हाथों में चंद्रहास खडग अथवा हंसिया एवं नीचे की ओर वज्र (कांटेदार कटार) होती है। माता के तन का ऊपरी भाग लाल रक्तिम वस्त्र से एवं नीचे का भाग बाघ के चमड़े से ढका रहता है। इनका वाहन गर्दभ (गधा) होता है। सातवें दिन देवी के इस रूप को गुड़ अर्पित करने से बाधाओं से मुक्ति मिलती है। इनकी पूजा का मंत्र है “ओम एं हीं क्लीं चामुंडाए विच्चे।”
अष्टम दुर्गा मां महागौरी
नवरात्रि के आठवें दिन माँ महागौरी का पूजन किया जाता है। मान्यता है कि जब माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया तब उनकी देह क्षीण और वर्ण काला हो गया। जब प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अर्धांगिनी रूप में स्वीकार किया तो अपनी जटा से निकलती पवित्र गंगा की जलधारा माता पर अर्पित की तो उनका रंग गौर हो गया। महागौरी का वहां भी श्वेत वृषभ है। देवी का यह आठवां स्वरुप शांत स्वभाव का और सुहागिनों को सुहाग देने वाला है। इनको भोग में नारियल चढ़ाना चाहिए। इनकी पूजा का मंत्र है “सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके, शरण्ये त्रियम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते।”
नवम दुर्गा माँ सिद्धिदात्री
नवरात्रि के अंतिम दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा होती है। ये देवी सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। पुराणों में यहाँ तक बताया गया है कि भगवान शिव को भी अपनी सिद्धियां इन देवी की पूजा से ही प्राप्त हुई थीं। सिद्धिदात्री माता के कारण ही अर्धनारीश्वर का जन्म हुआ। इनका वाहन सिंह है। चतुर्भुज देवी के दाएं और के ऊपर वाले हाथ में गदा और नीचे वाले हाथ में चक्र रहता है। बाएं और ऊपर वाले हाथ मेकमल का पुष्प एवं नीचे वाले हाथ में शंख रहता है। नवमी के दिन इनकी पूजा-उपासना कर कन्या पूजन करना चाहिए जिससे देवी सबसे अधिक प्रसन्न होती हैं। इनकी पूजा कर हलवा, चना, पूरी, खीर आदि का भोग लगाएं। इनकी पूजा का मंत्र है “ॐ महालक्ष्मी विदमहे, विष्णु प्रियाय धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात।” एवं “या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नेमो नमः।”
नवरात्रि की कहानी। दुर्गा माता की कहानी। Story of Durga Mata
उत्तर भारत में यह पर्व नवरात्रि के नाम से जाना जाता है जिसमें 9 दिन तक मां शक्ति की आराधना कर दसवें दिन विजयदशमी का पर्व मनाया जाता है जो रावण पर भगवान श्री राम बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। उत्तर भारत में जहां इस दौरान रामलीला का मंचन हो रहा होता है, वहीं पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा जैसे राज्यों में दृश्य परिवर्तन हो जाता है। यहां भी इस उत्सव को बुराई पर अच्छाई के रूप में ही मनाते हैं लेकिन यहां पर मुख्य रूप से मां दुर्गा से जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो दो कथाएं प्रचलित हैं, जो इस प्रकार हैं –
उत्तर भारत में प्रचलित कथा : जब राजा दशरथ ने भगवान श्री राम और माता सीता को वनवास का आदेश दिया, तब एक दिन वन में रहते हुए रावण ने माता सीता का हरण कर लिया। रावण को उसके अपराध का दंड देने के लिए और माता सीता को वापस लाने के लिए राम भगवान ने रावण पर आक्रमण किया। श्री राम और रावण में कई दिनों तक युद्ध चलता रहा। श्री राम ने विजय प्राप्ति के लिए माता दुर्गा की आराधना की और दसवीं तिथि को रावण का वध किया। इसी उपलक्ष्य में विजयदशमी का उत्सव मनाया जाता है।
पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा जैसे राज्यों में प्रचलित कथा : वहीं दूसरी ओर पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में जो कथा प्रचलित है वह मां दुर्गा से जुड़ी है। एक बार महिषासुर ने तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन किया। ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर महिषासुर को वरदान मांगने के लिए कहा, तब महिषासुर ने अमर होने का वरदान मांगा। इस पर ब्रह्माजी ने जवाब दिया कि जो इस संसार में आया है उसकी मृत्यु भी अवश्य होगी, इसलिए चाहो तो कोई दूसरा वरदान मांग सकते हो। तब महिषासुर ने बहुत सोचा और कहा मुझे यह वरदान दीजिए कि मेरी मृत्यु केवल एक स्त्री के हाथों ही हो। तब ब्रह्माजी तथास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गए। महिषासुर सोचने लगा कि एक स्त्री भला मेरा क्या बिगाड़ सकती है, अब तो मैं अमर हो गया। उसने सारे देवताओं को अधिकारहीन और पराजित करके स्वर्ग से निकाल दिया। सभी देवता एकत्रित होकर भगवान विष्णु और भगवान शिव के पास गए। महिषासुर की ऐसी करतूत सुनकर उन दोनों ने बड़ा क्रोध प्रकट किया। तब उनके शरीर से एक तेज निकला। सभी देवताओं के भीतर से जो शक्तियां निकली, उसने एक स्त्री का रूप धारण कर लिया जिसे दुर्गा कहा गया। महिषासुर और माता दुर्गा में घोर संग्राम छिड़ गया। यह 10 दिनों तक चला और दशमी तिथि को माता दुर्गा में ने महिषासुर का वध कर दिया और महिषासुरमर्दिनि कहलाईं।
इस प्रकार मान्यता या कथा चाहे जो भी हो लेकिन यह पर्व हर रूप में बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
नवरात्रि कब है। अष्टमी और नवमी कब है। Navratri kab hai। Navratri Dates। Ashtmi-Navmi Dates
नवरात्रि का पर्व इस बार 17 अक्टूबर, शनिवार से शुरू है और 25 अक्टूबर, रविवार को इसका समापन है। 26 अक्टूबर, सोमवार को विजयदशमी (दशहरा) मनाया जाएगा। दुर्गा पूजा या नवरात्री के त्यौहार पर कलश स्थापना की जाती है। इस बार दुर्गा पूजा 2020 में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त प्रातः 06:16 से 07:40 बजे तक है। इसके अलावा आप दोपहर में 11:48 से 12:30 के बीच अभिजित मुहूर्त में भी कलश स्थापित कर सकते हैं।
17 अक्टूबर 2020, शनिवार – प्रथमा तिथि
18 अक्टूबर 2020, रविवार – द्वितीय तिथि
19 अक्टूबर 2020, सोमवार – तृतीया तिथि
20 अक्टूबर 2020, मंगलवार – चतुर्थी तिथि
21 अक्टूबर 2020, बुधवार – पंचमी तिथि
22 अक्टूबर 2020, बृहस्पतिवार – षष्ठी तिथि
23 अक्टूबर 2020, शुक्रवार – सप्तमी तिथि
24 अक्टूबर 2020, शनिवार – अष्टमी तिथि
25 अक्टूबर 2020, रविवार – नवमी तिथि
26 अक्टूबर 2020, सोमवार – दशहरा/विजय दशमी
दुर्गा पूजा विधि
जिस दिन से दुर्गा पूजा प्रारंभ हो, उस दिन प्रातः उठकर स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर माता का मंदिर सजाएं। धुले हुए पटले या ऐसे किसी स्थान पर स्वच्छ वस्त्र बिछाएं और उस पर गणेश जी व दुर्गा माता की मूर्ति स्थापित करें। साथ ही एक कलश में जल भरकर, उसमें लौंग का जोड़ा, सुपारी, पुष्प और एक सिक्का डालकर ऊपर से नारियल रखकर स्थापित करें। अब दीपक जलाएं और यह अखंड ज्योति नौ दिन तक इसी प्रकार जलती रहनी चाहिए। फिर दुर्गा सप्तशती का पाठ एवं अज्ञारी (घी और लौंग से आहुति) करें। इसके बाद आरती करें और माता का भोग लगाकर सभी को प्रसाद दें। नौ दिन तक इसी विधि से पूजा करके अंतिम दिन कन्या पूजा करके माता की विदाई करें। कहते हैं इस दिन देवी अपने घर हिमालय पर्वत पर वापस चली जाती हैं, इसीलिए नदी या समंदर में देवी की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है।