Shradh 2020 dates in Hindi
जानें कैसे और किन तिथियों पर करें पितृपक्ष और श्राद्ध पक्ष
पितृपक्ष और श्राद्ध पक्ष- हर साल भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक 16 दिन की अवधि को श्राद्ध पक्ष कहते हैं। अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए श्रद्धा और विश्वास के साथ किए गए कर्म को ही श्राद्ध कहते हैं। प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य होता है कि वह श्राद्ध अवश्य करें अन्यथा पितृदोष के कारण उसे जीवन भर विभिन्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ऐसा माना जाता है कि पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष में हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और हमारे व्यवहार को देखते हैं, उनके लिए दिए गए भोजन से तृप्त होकर वापस ब्रह्माण्ड को जाते हैं और हमको आशीर्वाद देते हैं जिससे सालभर हम सुख से रह सकते हैं। उन्नति का, सफलता प्राप्त करने का, सुख समृद्धि का और सौभाग्य वृद्धि का सबसे कल्याणदायक मार्ग है श्राद्ध। श्राद्ध पक्ष 16 दिन के होते हैं | Shradh 2020 dates
2020 में श्राद्ध की तिथियाँ – Shradh 2020 dates
- 01 सितंबर – पूर्णिमा श्राद्ध (मंगलवार)
- 02 सितंबर – प्रतिपदा (बुधवार)
- 03 सितंबर – द्वितीया (बृहस्पतिवार)
- 04 सितंबर – तृतीया (शुक्रवार)
- 05 सितंबर – चतुर्थी (शनिवार)
- 06 सितंबर – पंचमी (रविवार)
- 07 सितंबर – षष्ठी (सोमवार)
- 08 सितंबर – सप्तमी (मंगलवार)
- 09 सितंबर – अष्टमी (बुधवार)
- 10 सितंबर – नवमी (बृहस्पतिवार)
- 11 सितंबर – दशमी (शुक्रवार)
- 12 सितंबर – एकादशी (शनिवार)
- 13 सितंबर – द्वादशी (रविवार)
- 15 सितंबर – त्रयोदशी (सोमवार)
- 16 सितंबर – चतुर्दशी (मंगलवार)
- 17 सितंबर – सर्वपितृ अमावस्या (बुधवार)
किन तिथियों पर करें किसका पितृपक्ष और श्राद्ध पक्ष – (Shradh 2020 dates)
मान्यता है कि जिस दिन व्यक्ति की मृत्यु हो उसी तिथि को श्राद्ध किया जाना चाहिए। उदाहरण के तौर पर यदि किसी परिजन की मृत्यु द्वादशी के दिन हुई हो तो द्वादशी के दिन ही उसका श्राद्ध करना चाहिए और अगर किसी की मृत्यु प्रतिपदा के दिन हुई हो तो उसका श्राद्ध प्रतिपदा को ही करना चाहिए। श्राद्ध करने के लिए तिथियों का चयन इस प्रकार करें –
- मृत पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन और मृत माता का श्राद्ध नवमी के दिन किया जाना चाहिए।
- जिन लोगों की मृत्यु दुर्घटना के कारण या अकाल मृत्यु हुई हो अथवा उन्होंने आत्महत्या की हो तो ऐसे लोगों को श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाना चाहिए।
- अगर कोई महिला सुहागन मरती है तो उसका श्राद्ध नवमी को किया जाना चाहिए।
- सन्यासियों के श्राद्ध के लिए द्वादशी की तिथि उत्तम मानी जाती है।
- जिन परिजनों की मृत्यु की तिथि याद ना हो या किसी कारणवश भूल गए हों तो ऐसे लोगों का श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है। जिस किसी का भी श्राद्ध करना भूल गए हों, उसका श्राद्ध भी इस दिन किया जा सकता है। इस दिन को पितृ विसर्जन भी कहते हैं।
पितृ पक्ष और श्राद्ध पक्ष के दौरान कुछ ज़रूरी नियम –
पितृ पक्ष में जैसे हम श्राद्ध कर्म द्वारा अपने पितरों को प्रसन्न करते हैं, वैसे ही कुछ विशेष नियमों का पालन करके भी हम अपने पूर्वजों को प्रसन्न कर सकते हैं। ये नियम हैं :-
- श्राद्ध पक्ष में प्रत्येक दिन तर्पण करना चाहिए। आप पानी में दूध, जौ, चावल और गंगाजल डालकर तर्पण करें। संभव ना हो तो सादे पानी में तिल मिलाकर भी तर्पण किया जा सकता है।
- इन दिनों पिंड दान करना भी जरूरी माना जाता है। श्राद्ध कर्म की विधि में पके हुए चावल, तेल और दूध को मिलाकर पिंड बनाए जाते हैं और उस पिंड को शरीर का प्रतीक माना जाता है।
- श्राद्ध में कोई भी विशेष पूजा-अर्चना, शुभ कार्य और अनुष्ठान करना निषेध होता है। यद्यपि आप देवताओं की नित्य पूजा कर सकते हैं।
- श्राद्ध में जो चीजें मना होती हैं वह पान खाना, तेल लगाना और संभोग करना।
- श्राद्ध पक्ष में रंगीन फूलों के उपयोग से भी बचना चाहिए।
- इन 16 दिनों में चना, मसूर, बैंगन, प्याज, लहसुन, मांस-मदिरा, शलजम और काले नमक का सेवन ना करें।
ऐसे करें पितृपक्ष और श्राद्ध पक्ष
- सर्वप्रथम श्राद्ध के लिए उपयुक्त तिथि का चुनाव करें।
- श्राद्ध कर्म के लिए किसी विद्वान पंडित या पुरोहित को बुलाएं।
- जिस दिन श्राद्ध करें उस दिन अच्छे से अच्छा भोजन बनाएं।
- जिस व्यक्ति का श्राद्ध कर रहे हों, उसके पसंद के अनुसार भोजन बनाए तो ज्यादा उत्तम है।
- भोजन में प्याज-लहसुन का प्रयोग न करें।
- शास्त्रों में पंचबलि देने की भी मान्यता है जिसमें गौ, श्वान, काक, देवादि बलि एवं पिपीलिका(चींटी) बलि आती है।
- बलि का अर्थ आप गलत ना समझें, यहां किसी जीव की हत्या नहीं की जाती बल्कि इन जीवों को खाना खिलाया जाता है।
- पुरोहित के बताए अनुसार तर्पण और पिंड दान करें, उसके बाद ब्राह्मण भोज आयोजित करें और सभी को दक्षिणा दें। दक्षिणा के साथ ब्राह्मण को सीधा (सीदा) भी दिया जाता है जिसमें दालचीनी, चावल, नमक, मसाले, तेल, कच्ची सब्जियाँ और मौसमी फल होते हैं।
- ब्राह्मणों को भोज कराने के बाद अपने पितरों को स्मरण करते हुए धन्यवाद दें और जाने अनजाने हुई भूल चूक के लिए क्षमा मांगे। इसके बाद परिवार सहित भोजन ग्रहण करें।
2020 में इस विधि से करें श्राद्ध – Shradh 2020 dates & procedure
जिस स्थान पर श्राद्ध कर्म किया जाना हो सबसे पहले उसे धो लें या साफ करें। फिर उस पर साफ़ और शुद्ध कुश का आसन बिछा कर बैठें। ध्यान रखें कि जब बैठे तो कुशासन का आगे वाला भाग पूर्व दिशा की तरफ होना चाहिए। यदि कुश का आसन न मिल पा रहा हो तो ऐसी स्थिति में कंबल का आसन बना सकते हैं। अपने पास जरूरी सामग्री जैसे एक लोटे में जल, तांबे की थाली, कच्चा दूध, फूल माला, चढ़ाने के लिए सफेद फूल, जौ, सुपारी, जनेऊ, पैसों के रूप में कुछ सिक्के, काले तिल और कच्चे चावल लेकर बैठें। आसन पर बैठने के पश्चात आचमन करें, आचमन करते समय तीनों बार यह मंत्र बोले “ऊं केशवाए नमः, ॐ माधवाय नमः, ॐ गोविंदाय नमः।” आचमन करने के बाद हाथ धोकर कुछ जल को अपने ऊपर छिड़कें। ऐसे बैठें कि आपका मुंह पूर्व दिशा की ओर हो। अब आपको अपने पितरों को बुलाने के लिए अनुरोध करना होगा जिसके लिए सबसे पहले गायत्री मंत्र जपते हुए कुश की अंगूठी बना ले और इस अंगूठी को अनामिका उंगली में पहन लें। अपने हाथ में जल, फूल, सुपारी और एक सिक्का लेकर संकल्प करें। संकल्प इस प्रकार होता है कि सबसे पहले अपना नाम, फिर पिता का नाम, गोत्र का नाम और भगवान का नाम लिया जाता है एवं पितरों का स्मरण करते हुए उनसे तर्पण ग्रहण करने का अनुरोध किया जाता है। कच्चा दूध, गुलाब का फूल यह सब सामान तांबे की थाली में रखें फिर देवताओं और सब पितरों का स्मरण हाथ में चावल लेकर करें। सीधे हाथ की उंगलियों के आगे वाले हिस्से से तर्पण दें, देवों को तर्पण देने के बाद इसी तरह ऋषि यों को भी तर्पण देना चाहिए।
अब अपना मुंह उत्तर दिशा की ओर कर लें। जनेऊ की माला बनाकर गले में डाल लें। पालथी लगा कर बैठे और हथेलियों के बीच से जल अर्पित करते हुए देव शक्ति को तर्पण दें। अब अपना मुंह फिर से घुमा लें और दक्षिण दिशा की ओर कर लें। जनेऊ को ऐसे पहने की उसका एक भाग उल्टे हाथ के कंधे पर और दूसरा सीधे हाथ के नीचे से निकले। अब आपको तांबे की थाली में तिल अर्पित करना होगा। थोड़े से तिल को हाथ में लेकर पितरों का स्मरण करें। फिर तिलों को अंगूठे और तर्जनी के मध्य भाग से थाली में अर्पित कर दें जिस प्रकार हवन में आहुति दी जाती है।
अब अपने गोत्र का नाम और पिता का नाम लेते हुए अंजली से तीन बार जल अर्पित करें। इसी तरह तीन-तीन बार दादाजी और उनके पिताजी को तर्पण दें। इसी प्रकार आप अपने सभी स्वर्गवासी दिवंगत परिजनों को तर्पण दे सकते हैं। कई लोगों को अपने परदादा, परदादी या परनाना और परनानी के नाम नहीं पता होते हैं, ऐसे में वे लोग रूद्र, विष्णु और ब्रह्मदेव का नाम लेकर सूर्य देव को जल अर्पित कर सकते हैं।
इस सब के उपरांत अब पंच ग्रास निकाला जाता है जिसमें गोबर के उपले पर गाय के घी और गुड़ की धूप करके पंच भोग निकाला जाता है। आपको करना यह है कि केले के पत्ते पर देवताओं, गाय, कौवों, कुत्तों और बिल्ली के लिए थोड़ा-थोड़ा भोजन निकालें। देवताओं का भाग वाला भोग मंदिर में दें या बहते जल में प्रवाहित कर दें। इसके बाद गाय को भोजन खिलाऐं और बिल्ली का भोजन छत पर रखें या अपने हाथ से खिला सके तो ज्यादा अच्छा होगा। फिर कुत्ते को उसका भोजन दें। इसके बाद भगवान विष्णु को प्रणाम करें और पितृगणों को प्रणाम करके आशीर्वाद लें। आखिर में क्षमा प्रार्थना करके अपनी प्रसन्नता का वरदान मांग लें। इस विधि से श्राद्ध कर्म करने से आपके पूर्वज खुश होकर आपको धन संपत्ति और सुख-समृद्धि देंगे।