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Story of Jagannath Rath Yatra | Jagannath Rath Yatra ki kahani

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पर प्रकाशित 06 Jul 2020 / में त्यौहार व आयोजन / जगन्नाथ रथ यात्रा

Story of Jagannath Rath Yatra | Jagannath Rath Yatra ki kahani


श्री जगन्नाथ, हर वर्ष के जून महिने में भक्तों का जमावड़ा जहां तीन विशालकाय रथों को भक्तों द्वारा खिचा जाता है
रथों का एक अद्भूत नजारा, एक अद्भूत मान्यता, एक अद्भूत दृश्य
आखिर क्या है श्री जगन्नाथ की रथ यात्रा

उड़ीसा के पुरी शहर में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर, भगवान जगन्नाथ को समर्पित है। और चार धाम तीर्थ स्थलों में से एक है, यहां भगवान श्री कृष्ण को ही जगन्नाथ के रुप में पूजा जाता है। हर साल यहां रथ यात्रा निकाली जाती है। भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा प्रत्येक वर्ष आषाढ़ शुक्ल की द्वितीया को जगन्नाथपुरी से शुरू होती है। जिसे देखने के लिए लोगों का जमावड़ा लगाता है करोड़ों की संख्या में लोग इस रथ यात्रा का दर्शन करते हैं।
800 साल पुराने इस मंदिर में भगवान कृष्ण यानी जगन्नाथ और उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा भी रथ पर विराजमान होती हैं।
रथयात्रा में तीनों ही लोगों के रथ निकलते हैं। सबसे पहले भगवान जगन्नाथ के भाई बालभद्र का रथ प्रस्थान करता है उसके बाद बहन सुभद्रा का रथ और सबसे अंत में भगवान जगन्नाथ का रथ निकाला जाता है।
रथ का निर्माण हमेशा नीम की लकड़ी से किया जाता है, क्योंकि ये औषधिय लकड़ी होने के साथ पवित्र भी मानी जाती है। बता दें कि नीम के किस पेड़ से लकड़ी का चयन होगा इसका फैसला जगन्नाथ मंदिर समिति तय करती है। हर साल बनने वाला ये रथ एक समान ऊंचाई का ही बनाय जाता है, इसमें भगवान जगन्नाथ का रथ 45.6 फीट ऊंचा, बलराम का रथ 45 फीट और देवी सुभद्रा का रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है।

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भगवान के रथ में एक भी कील या कांटे आदि का प्रयोग नहीं होता। यहां तक की कोई धातु भी रथ में नहीं लगाई जाती है। रथ की लकड़ी का चयन बसंत पंचमी के दिन और रथ बनाने की शुरुआत अक्षय तृतीया के दिन से होता है।


ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि के साथ रथ को लोग खींचते हैं। जिसे रथ खींचने का सौभाग्य मिल जाता है, वह महाभाग्यशाली माना जाता है। इन बड़े रथों को खिचने के लिए काफि संख्या में भक्त तैयार रहते हैं, माना जाता है कि रथ खींचना बहुत शुभ होता है और रथ खींचने वाले व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।


मान्यता के अनुसार, भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बालभद्र एवं बहन सुभद्रा को जगन्नाथ मंदिर से रथ में बैठाकर गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है। गुंडिचा मंदिर भगवान जगन्नाथकी मौसी का घर है। गुंडिचा मंदिर में उनका खूब आदर सत्कार किया जाता है। भगवान यहां पूरे सात दिनों तक
रहते हैं। इस दौरान उन्हें विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजनों एवं फलों का भोग लगाया जाता है। भगवान अच्छे अच्छे पकवान खाकर बीमार पड़ जाते हैं। फिर उन्हें ठीक करने के लिए पथ्य भोग लगाया जाता है जिस्से वो ठिक हो जाएं।


गुंडिचा मंदिर में हफ्ते भर भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों को दर्शन देते हैं जिसे आड़प दर्शन कहा जाता है। इस दौरान गजामूंग, नारियल, लाई और मालपुए प्रसाद स्वरुप बांटे जाते हैं जिसे महाप्रसाद कहा जाता है। एक हफ्ते बाद भगवान जगन्नाथ अपने घर अर्थात् जगन्नाथ मंदिर में वापस चले जाते हैं। रथों के वापसी यात्रा की रस्म को बहुड़ा यात्रा कहते हैं।


आस्था और भक्ति से भरा रथयात्रा मेला काशी में भी काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है। यहां यह उत्सव 9 दिन तक चलता है। इसकी भव्यता का पता आपको
इसे देखकर ही पता लग जाएगा।

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