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क्यों मनाई जाती है होली । होली की कहानी

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होली का त्यौहार यानी खुद रंगों में सराबोर होने और दूसरों को रंगों से रंगने का दिन। यह त्यौहार बच्चों का मनपसंद है क्योंकि इस दिन पूरा धमाल होता है। होली का त्यौहार मार्च या हिन्दू कलैण्डर के अनुसार फाल्गुन महीने में पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली 2019 (होली २०१९) मार्च महीने की इक्कीस तारीख को मनाई जायेगी। इस समय सर्दी ख़त्म हो रही होती है और गर्मी की शुरुआत होती है। इसलिए मौसम बेहद सुहावना होता है। होली की कहानी भी बेहद रोचक और प्रेरक है। रंगों के इस पर्व को अच्छाई की बुराई पर जीत के रूप में भी जाना जाता है।

होली से एक दिन पहले होलिका दहन होता है। इस दिन लोग एक दूसरे को रंग-गुलाल लगाते हैं। इसके साथ ही एक-दूसरे के गले मिल कर उन्हें होली की शुभकामनायें दी जाती है। घरों में तरह-तरह के व्यंजन और पकवान बनते हैं। यह त्यौहार अन्य त्योहारों की तरह हमें शिक्षा देती है और वो है एकता, खुशी और प्यार की शिक्षा। हमारे देश के विभिन्न हिस्सों में होली मनाने के तरीके भी अलग हैं जो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। जैसे वृंदावन में फूलों की होली, बरसाने की लठमार होली। आनंदपुर का होला-मोहल्ला, बिहार की फागु-पूर्णिमा आदि भी मशहूर हैं। तो आईये जानें होलिका-दहन किस लिए किया जाता हैं, होलिका मनाने का कारण और क्या है होली की कहानी।

क्यों मनाई जाती है होली । होली की कहानी

होली क्यों मनाई जाती है, इसको लेकर पुराणों में होली के बारे में कई कथाएं प्रचलित है। इनमें से एक कथा श्री कृष्ण से संबंधित है तो एक भक्त प्रह्लाद और एक अन्य कहानी राजा पृथु से। होली की एक कथा शिवपुराण में भी वर्णित है जो शिव-पार्वती की है। लेकिन हिरण्यकशिपु प्रह्लाद की कहानी होली से जुड़ी हुई है। ऐसा माना जाता है कि इसके बाद ही होली की शुरुआत हुई। जानिए क्या है होली की कहानी और होली पर्व मनाने का कारण।

होली की कहानी के अनुसार प्राचीन काल में एक बेहद दुष्ट राजा था, जिसका नाम था हिरण्यकश्यप। हिरण्यकश्यप बेहद दुष्ट और अहंकारी था। वो देवताओं से घृणा करता था। जो भी व्यक्ति अन्य देवताओं की पूजा करता था, हिरण्यकश्यप उसे दंड देता था। उसकी पूरी प्रजा उसके अत्याचारों से परेशान थी। हिरण्यकश्यप को सबसे अधिक घृणा भगवान विष्णु से थी। हिरण्यकश्यप अपने छोटे भाई से बेहद प्रेम करता था जिसका वध भगवान विष्णु ने किया था। इसके बाद से ही हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानने लगा था। भगवान विष्णु का नाश करने के लिए उस राक्षस ने ब्रह्मा जी की कड़ी तपस्या कर के उन्हें प्रसन्न किया। ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर के उसने एक वरदान प्राप्त किया।

क्या था यह वरदान

हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी से यह मांगा कि उसे इस पृथ्वी पर कोई भी न मार सके। उसे न दिन में मारा जा सके न ही रात में। न उसे कोई घर में मार सके, न ही घर से बाहर। न कोई पशु उसे मार सके. न ही कोई मानव। उसकी मृत्यु न किसी अस्त्र से हो, न ही किसी शस्त्र से। ब्रह्मा जी से मनचाहा वरदान पाकर उसका घमंड और भी बढ़ गया। इसके बाद से वो खुद को भगवान मानने लगा। लोगों को भी उसकी पूजा करने के लिए कहने लगा।

प्रह्लाद का जन्म

कुछ समय बाद हिरणाकश्यप के घर पुत्र ने जन्म लिया, जिसका नाम उन्होंने प्रह्लाद रखा। प्रह्लाद अपने पिता से बिलकुल अलग था। वो भगवान विष्णु का परम भक्त था। हिरणाकश्यप ने कई बार प्रह्लाद को विष्णु की भक्ति करने से रोका। जब वो नहीं माना तो उसने प्रह्लाद को डराया धमकाया, यही नहीं कई यातनाएं भी दी। हिरणाकश्यप ने प्रह्लाद को जहर खिलाया, पहाड़ से फेंका लेकिन प्रह्लाद पर भगवान विष्णु की कृपा थी। जिसके कारण वो हर बार बच जाता। दिन-प्रतिदिन प्रह्लाद का भगवान विष्णु में विश्वास बढ़ने लगा। इस बात ने हिरणाकश्यप को और भी क्रूर और अशांत कर दिया। क्रोध और अहंकार में चूर हिरणाकश्यप ने प्रह्लाद का वध करने की कई योजनाएं बनाई।

होलिका दहन की कहानी

हिरण्यकश्यप की एक बहन थी जिसका नाम था होलिका। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि उसे आग जला नहीं सकती। हिरणाकश्यप ने होलिका को मिले इस वरदान का फायदा उठाने की सोची। उसने एक योजना बनाई। इस योजना के अनुसार उसने प्रह्लाद को होलिका की गोद में बिठाकर आग में बिठा दिया। हिरणाकश्यप को पूरा विश्वास था कि इससे प्रह्लाद की आग में जल कर मृत्यु हो जाएगी जबकि होलिका बच जायेगी। लेकिन हुआ इससे बिलकुल उल्टा। भगवान विष्णु की कृपा से होलिका अग्नि में जल गयी जबकि भक्त प्रह्लाद बच गए। होलिका को बुराई के रूप में जलाकर होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है। भक्त प्रह्लाद का बाल भी बांका न होने की खुशी में इस दिन को त्यौहार के रूप में मनाया जाने लगा। इसे होली का नाम दिया गया।

हिरण्यकश्यप का वध

इसके बाद हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लिया। भगवान विष्णु का यह अवतार न तो मनुष्य था, न ही कोई जानवर। हिरण्यकश्यप का वध न दिन को किया गया, न रात को बल्कि शाम के समय किया गया। न तो उसका वध घर के अंदर किया गया न ही बाहर, बल्कि घर की चौखट पर किया। इस तरह से भगवान विष्णु ने इस संसार को हिरण्यकश्यप के अत्याचारों से मुक्त किया।

होलिका दहन से अगले दिन को रंगों वाली होली मनाई जाती है जो भगवान कृष्ण से जुड़ी हुई है। होली को हमारे देश के विभिन्न हिस्सों में कई तरीकों से मनाया जाता है। कहीं-कहीं इस त्यौहार को सात से आठ दिन तक भी मनाया जाता है। तो यह थी होली और होलिका-दहन मनाने की कहानी। होली का त्यौहार प्यार और ख़ुशियों का त्यौहार है। ऐसे में इस त्यौहार के रंगों से अपने पूरे जीवन को रंगीन बना लें।

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