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दुर्गा पूजा 2020। क्यों मनाते हैं दुर्गा पूजा। महत्व और परम्पराएं।Durga Puja

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Durga Puja Story

दुर्गा पूजा 2020। Durga Puja 2020

विभिन्न पर्वों की इस पावन भूमि भारत में अनेक त्योहार मनाए जाते हैं जिनमें से एक है दुर्गा पूजा। देवी शक्ति के विभिन्न रूपों की उपासना और आराधना का उत्सव ही कहलाता है दुर्गा पूजा। पूरे भारतवर्ष में यह त्यौहार अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है लेकिन पश्चिम बंगाल में इसका विशेष आयोजन होता है। वहां दुर्गा पूजा का अलग ही स्तर देखने को मिलता है। देवी दुर्गा की पूजा के लिए पंडालों का निर्माण भी किया जाता है। सबसे सुंदर और आकर्षक पंडाल को प्रशासन पुरस्कार भी देता है। इस अवसर पर अलग-अलग स्थान पर कई सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं। दुर्गा पूजा के उत्सव की तिथियां हिंदू पंचांग के अनुसार निर्धारित की जाती हैं और जिन 15 दिन की अवधि में यह त्यौहार पड़ता है उसे देवी पक्ष या देवी पखवाड़ा भी कहा जाता है।

क्यों मनाते हैं दुर्गा पूजा। Why durga puja is celebrated। दुर्गा पूजा की कथा। Durga Puja Story

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उत्तर भारत में यह पर्व नवरात्रि के नाम से जाना जाता है जिसमें 9 दिन तक मां शक्ति की आराधना कर दसवें दिन विजयदशमी का पर्व मनाया जाता है जो रावण पर भगवान श्री राम बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। उत्तर भारत में जहां इस दौरान रामलीला का मंचन हो रहा होता है, वहीं पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा जैसे राज्यों में दृश्य परिवर्तन हो जाता है। यहां भी इस उत्सव को बुराई पर अच्छाई के रूप में ही मनाते हैं लेकिन यहां पर मुख्य रूप से मां दुर्गा से जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो दो कथाएं प्रचलित हैं, जो इस प्रकार हैं – 

उत्तर भारत में प्रचलित कथा : जब राजा दशरथ ने भगवान श्री राम और माता सीता को वनवास का आदेश दिया, तब एक दिन वन में रहते हुए रावण ने माता सीता का हरण कर लिया। रावण को उसके अपराध का दंड देने के लिए और माता सीता को वापस लाने के लिए राम भगवान ने रावण पर आक्रमण किया। श्री राम और रावण में कई दिनों तक युद्ध चलता रहा। श्री राम ने विजय प्राप्ति के लिए माता दुर्गा की आराधना की और दसवीं तिथि को रावण का वध किया। इसी उपलक्ष्य में विजयदशमी का उत्सव मनाया जाता है। 

पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा जैसे राज्यों में प्रचलित कथा : वहीं दूसरी ओर पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में जो कथा प्रचलित है वह मां दुर्गा से जुड़ी है। एक बार महिषासुर ने तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन किया। ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर महिषासुर को वरदान मांगने के लिए कहा, तब महिषासुर ने अमर होने का वरदान मांगा। इस पर ब्रह्माजी ने जवाब दिया कि जो इस संसार में आया है उसकी मृत्यु भी अवश्य होगी, इसलिए चाहो तो कोई दूसरा वरदान मांग सकते हो। तब महिषासुर ने बहुत सोचा और कहा मुझे यह वरदान दीजिए कि मेरी मृत्यु केवल एक स्त्री के हाथों ही हो। तब ब्रह्माजी तथास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गए। महिषासुर सोचने लगा कि एक स्त्री भला मेरा क्या बिगाड़ सकती है, अब तो मैं अमर हो गया। उसने सारे देवताओं को अधिकारहीन और पराजित करके स्वर्ग से निकाल दिया। सभी देवता एकत्रित होकर भगवान विष्णु और भगवान शिव के पास गए। महिषासुर की ऐसी करतूत सुनकर उन दोनों ने बड़ा क्रोध प्रकट किया। तब उनके शरीर से एक तेज निकला। सभी देवताओं के भीतर से जो शक्तियां निकली, उसने एक स्त्री का रूप धारण कर लिया जिसे दुर्गा कहा गया। महिषासुर और माता दुर्गा में घोर संग्राम छिड़ गया। यह 10 दिनों तक चला और दशमी तिथि को माता दुर्गा में ने महिषासुर का वध कर दिया और महिषासुरमर्दिनि कहलाईं। 

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इस प्रकार मान्यता या कथा चाहे जो भी हो लेकिन यह पर्व हर रूप में बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

दुर्गा पूजा का महत्त्व | Durga Puja Importance

दुर्गा पूजा के पर्व का भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व है। यह पर्व 9 दिनों तक मनाया जाता है लेकिन स्थान और परंपरा के अनुसार इसमें समय-समय पर परिवर्तन हो जाता है। कुछ लोग इसे 5 या 7 दिनों तक मनाते हैं। कुछ लोग 9 दिनों तक उपवास रखकर मां दुर्गा की पूजा करते हैं। पश्चिम बंगाल की तरफ यह पर्व षष्ठी तिथि से शुरू होता है और दशमी तिथि को समाप्त होता है। दुर्गा पूजा के दौरान जगह-जगह पर सजे हुए पांडाल अलग ही रौनक प्रकट करते हैं। माता के विभिन्न मंदिरों में दुर्गा पाठ, जागरण, माता की चौकी और भजन होते रहते हैं। कुछ भक्त घर में ही पूजा-पाठ करके माता को प्रसन्न करते हैं। 9 दिनों तक माता की पूजा कर मूर्ति का विसर्जन नदी, समुद्र या किसी जलाशय में कर दिया जाता है। नारी शक्ति का प्रतीक होने के कारण यह पर्व और विशेष हो जाता है।

दुर्गा पूजा 2020 के शुभ मुहूर्त एवं महत्वपूर्ण तिथियाँ। Durga Puja 2020 dates

उत्तर भारत में दुर्गा पूजा या नवरात्री के त्यौहार पर कलश स्थापना की जाती है। इस बार दुर्गा पूजा 2020 में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त प्रातः 06:16 से 07:40 बजे तक है। इसके अलावा आप दोपहर में 11:48 से 12:30 के बीच अभिजित मुहूर्त में भी कलश स्थापित कर सकते हैं।

Navratra Dates 2020

17 अक्टूबर 2020, शनिवार – प्रथमा तिथि

18 अक्टूबर 2020, रविवार – द्वितीय तिथि

19 अक्टूबर 2020, सोमवार – तृतीया तिथि

20 अक्टूबर 2020, मंगलवार – चतुर्थी तिथि

21 अक्टूबर 2020, बुधवार – पंचमी तिथि

22 अक्टूबर 2020, बृहस्पतिवार – षष्ठी तिथि

23 अक्टूबर 2020, शुक्रवार – सप्तमी तिथि

24 अक्टूबर 2020, शनिवार – अष्टमी तिथि

25 अक्टूबर 2020, रविवार – नवमी तिथि

26 अक्टूबर 2020, सोमवार – दशहरा/विजय दशमी

पश्चिम बंगाल की तरफ दुर्गा पूजा विशेष रूप से अष्टमी तिथि को मनाई जाती है इस बार अष्टमी तिथि 6 अक्टूबर की है और पूजा का विशेष महत्व होगा –

अष्टमी तिथि – 24 अक्टूबर 2020, रविवार

अष्टमी तिथि प्रारंभ – 23 अक्टूबर 2020 06:56am से

अष्टमी तिथि समाप्त – 24 अक्टूबर 2020 06:54am

दुर्गा पूजा कब है

बंगाल जैसे राज्यों में दुर्गा पूजा मुख्य रूप से षष्ठी से नवमी तिथि तक मनाई जाती है अर्थात 04 सितंबर से 07 सितंबर तक यह पर्व मनाया जाएगा। दशहरा वाले दिन माँ की मूर्ति नदी में विसर्जित कर दी जाएगी। पूरे उत्तर भारत में नौ दिनों तक माँ शक्ति की आराधना का यह उत्सव 24 अक्टूबर से 26 अक्टूबर तक मनाया जाएगा।

दुर्गा पूजा विधि

जिस दिन से दुर्गा पूजा प्रारंभ हो, उस दिन प्रातः उठकर स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर माता का मंदिर सजाएं। धुले हुए पटले या ऐसे किसी स्थान पर स्वच्छ वस्त्र बिछाएं और उस पर गणेश जी व दुर्गा माता की मूर्ति स्थापित करें। साथ ही एक कलश में जल भरकर, उसमें लौंग का जोड़ा, सुपारी, पुष्प और एक सिक्का डालकर ऊपर से नारियल रखकर स्थापित करें। अब दीपक जलाएं और यह अखंड ज्योति नौ दिन तक इसी प्रकार जलती रहनी चाहिए। फिर दुर्गा सप्तशती का पाठ एवं अज्ञारी (घी और लौंग से आहुति) करें। इसके बाद आरती करें और माता का भोग लगाकर सभी को प्रसाद दें। नौ दिन तक इसी विधि से पूजा करके अंतिम दिन कन्या पूजा करके माता की विदाई करें। कहते हैं इस दिन देवी अपने घर हिमालय पर्वत पर वापस चली जाती हैं, इसीलिए नदी या समंदर में देवी की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है।

दुर्गा पूजा के रिवाज़। Durga puja cultures

दुर्गा पूजा का उल्लास देशभर में देखने लायक होता है लेकिन हर जगह के अनुसार इस पर्व से जुड़े रिवाजों और परंपराओं में परिवर्तन आ जाता है। इससे जुड़े कुछ मुख्य रिवाज़ हैं –

कलश स्थापना – नवरात्री के प्रथम दिन माता की प्रतिमा के साथ जौ बो के कलश भी स्थापित किया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण रिवाज़ है।

भगवान की प्रतिमा – दुर्गा पूजा के दौरान माँ दुर्गा के अलग-अलग पंडाल और दरबार भी सजाए जाते हैं। इसमें शेर पर बैठी हुई दुर्गा माँ की मूर्ति होती है जिसके नीचे महिषासुर मरणासन्न पड़ा होता है। इसके बाएं तरफ लक्ष्मी माता और गणेश जी की प्रतिमा एवं दाएं तरफ सरस्वती जी और कार्तिका देवी की प्रतिमाएं होती हैं। इसमें अन्य देवी-देवताओं के चित्र और मूर्तियाँ भी होती हैं।

चोखूदान – यह आँखदान की काफी प्राचीन परंपरा है। ऐसी मान्यता थी कि जब देवी के पंडाल के लिए प्रतिमाएं तैयार की जाती हैं तो आँखें आखिर में बनाई जाती थीं। यह नेत्र दान की परंपरा मानी जाती है। हालांकि आजकल प्रतिमाओं के साथ ही आँखे बना दी जाती हैं तभी प्रतिमाएं सौंपी जाती हैं।

पुष्पांजलि – अष्टमी तिथि को दुर्गा माता को पुष्प अर्पित किये जाते हैं जिसे पुष्पांजलि की परंपरा खा जाता है।

कन्या पूजन – अष्टमी या नवमी को 9 कन्याओं को बिठाकर उनकी पूजा की जाती है और भोजन कराया जाता है। यह नवदुर्गा पूजा की एक महत्वपूर्ण परंपरा है जिसमे 1 वर्ष से 16 वर्ष की कन्याओं का पूजन होता है।

सिंदूर खेला – दशमी तिथि को बंगाल में महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगती हैं। एक प्रकार से ये सिंदूर की होली होती जिसे सिंदूर खेला की परंपरा कहा जाता है।

विजयदशमीदशमी तिथि को दुर्गा माता की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है और उन्होंने इसी दिन महिषासुर का वध किया था यह सोचकर उत्सव मनाया जाता है। इसी दिन दशहरे का पर्व भी मनाया जाता है जिसमें श्री राम का रूप रखे बालक रावण के पुतले का वध करते हैं।

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