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कोरोना से अपने बच्चो को बचाओ ना । उनकी IMMUNITY बढ़ाओ ना | Swarn Prashnam Sanskar | Dr. Garima Saxena

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sukhayubhava
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Veröffentlicht auf 13 May 2020 / Im Ayurveda

#Protect Your #Child from #Corona

सुवर्णप्राशन संस्कार - एक भारतीय परंपरा
SUVARNA PRASHAN - HERBAL IMMUNIZATION

आधुनिक विज्ञान ने कई रोगो के लिये Vaccine निकाली, और भी सँशोधन जारी है; यह एक नित्य चलनेवाला कार्य है। हमारे आचार्योने यही सिद्धांत से हजारो साल पहले सोच रखा था, और उन्होने सभी प्रकार के रोग के सामने शरीर रक्षण कर सके उसके लिये रोगप्रतिकार क्षमता ही बढनी चाहिये, यह बात को लेकर एक ही शस्त्र ढूँढ निकाला, वह यानि सुवर्ण - सोना; और ईसके लिये सुवर्णप्राशन संस्कार की हमें भेंट की । सुवर्ण यानि सोना (Gold) और प्राशन यानि चटाना ।

सुवर्ण ही क्यूँ??

सुवर्ण हमारे शरीर के लिये श्रेष्ठत्तम धातु है। वह ना ही केवल व्बालको के लिये है, पर वह सभी उंमर के लिये उतनी ही असरकारक और रोगप्रतिकार क्षमता बढानेवाली है। ईसीलिये तो हमारे जीवन व्यवहार में सदीयों से सुवर्ण का महत्व रहा है। उसकी हमारे शारीरिक और मानसिक विकार में महत्वपूर्ण प्रभाव होने के कारण ही उसको शुभ मान जाता है, उसका दान श्रेष्ठ माना गया है । हमारे पूर्वजो की स्पष्ट समज थी कि, सोना हमारे शरीरमें कैसे भी जाना चाहिये ! ईसलिये ही हमारे यहाँ शुद्ध सोने के गहने पहनने का व्यवहार है; कभी नकली गहने पहनने पर बुजुर्गो की डाँट भी पडती है। यही कारण से ही हमारे राजा और नगरपति - धनवान लोग सोने की थाली में ही खाना खाते थे, जिससे सुवर्ण घिसाता हुआ हमारे शरीर के भीतर जाये। सोने के गह्ने पहनना, सोना खरीदना, सोने का दान करना, सोने का संग्रह करना, सोनेकी थाली में खान यह सभी बातों में हमारे आचार्यो का अति महत्वपूर्ण द्रष्टिकोण रहा था कि, सोना शरीरमें रोगप्रतिकार क्षमता तो बढाता ही है, और उसके साथ-साथ हमारी मानसिक और बौद्धिक क्षमता भी बढाता है। यह शरीर, मन एवं बुद्धि का रक्षण करनेवाली अति तेजपूर्ण धातु है। ईसलिये तो पूरी दुनिया की Economy सुवर्ण पर निर्भर है। यही उसकी हमारे जीवन में महता का द्योतक है!!

सुवर्णप्राशन यह हमारे 16 संस्कारो में से एक है । हमारे यहाँ जब बालक का जन्म होता है तब उसको सुना या चांदी की शलाका (सली) से उसके जीभ पर शहद चटाने की या जीभ पर ॐ लिखने की एक परँपरा रही है। यह परंपरा का मूल स्वरूप याने हमारा सुवर्णप्राशन संस्कार। सुवर्ण की मात्रा चटाना यानि सुवर्णप्राशन। हम यह करते ही है पर हमें उसकी समझ नही है। यह कैसे आया और क्यूँ आया? इसका हेतु और परिणाम क्या है यह हमें पता नही था। सदीयो के बाद भी यह कैसे भी स्वरूप में टीकना यह कुछ कम बात नहीं है। उसके लिये हमारे आचार्योने कितना परिश्रम उठाया होगा, तब जाकर यह हमारे तक पहूँचा है। पर यहाँ समझने की कभी हमनें कोशिश की, ना हि किसी ने समझाने का कष्ट लिया है।


यह सुवर्णप्राशन सुवर्ण के साथ साथ आयुर्वेद के कुछ औषध, गाय का घी और शहद के मिश्रण से बनाया जाता है। और यह जन्म के दिन से शुरु करके पूरी बाल्यावस्था या कम से कम छह महिने तक चटाना चाहिये। अगर यह हमसे छूट गया है तो बाल्यावस्था के भीतर यानि 16 साल की आयु तक कभी भी शुरु करके इसका लाभ ले सकते है। यही हमारी परंपरा को पुष्टि देने के लिये ही बालक के नजदीकी लोग सोने के गहने या सोने की चीज ही भेंट करते है; शायद उस समय पर वो यही सुवर्णप्राशन ही भेंट करते होंगे।

सुवर्णप्राशन मेधा (बुद्धि), अग्नि ( पाचन अग्नि) और बल बढानेवाला है। यह आयुष्यप्रद, कल्याणकारक, पुण्यकारक, वृष्य, वर्ण्य (शरीर के वर्णको तेजस्वी बनाने वाला) और ग्रहपीडा को दूर करनेवाला है. सुवर्णप्राशन के नित्य सेवन से बालक एक मास मं मेधायुक्त बनता है और बालक की भिन्न भिन्न रोगो से रक्षा होती है। वह छह मास में श्रुतधर (सुना हुआ सब याद रखनेवाला) बनता है, अर्थात उसकी स्मरणशक्त्ति अतिशय बढती है।

यह सुवर्णप्राशन पुष्यनक्षत्र में ही उत्तम प्रकार की औषधो के चयन से ही बनता है। पुष्यनक्षत्रमें सुवर्ण और औषध पर नक्षत्र का एक विशेष प्रभाव रहता है। यह सुवर्णप्राशन से रोगप्रतिकार क्षमता बढने के कारण उसको वायरल और बेक्टेरियल इंफेक्शन से बचाया जा सकता है। यह स्मरण शक्ति बढाने के साथ साथ बालक की पाचन शक्ति भी बढाता है जिसके कारण बालक पुष्ट और बलवान बनता है। यह शरीर के वर्ण को निखारता भी है। ईसलिये अगर किसी बालक को जन्म से 16 साल की आयु तक सुवर्णप्राशन देते है तो वह उत्तम मेधायुक्त बनता है।

और कोई भी बिमारी उसे जल्दी छू नही सकती।

छह मास तक का प्रयोग :-

सही मात्रा और औषध से बना हुआ सुवर्णप्राशन अगर किसी भी बालक को छह मास तक नियमित रूप से दिया जाये तो वह "श्रुतधर" मतलब कि एक बार सुना हुआ उसको याद रह जाता है । अगर हम इसको आज के परिप्रेक्ष्य में तो उसकी याददास्त अवश्य ही बढती है। और स्वस्थ और तेजस्वी भारत के निर्माण में यह संस्कार हमारे लिये एक बहुत ही महतवपूर्ण बात है। इसके लिये 16 साल तक की उम्र के किसी बालक को कभी भी शुरु करवा सकते है। और कम से कम छह महिने तक इसका सेवन करवाना चाहिये। और इसके लिये पुष्यनक्षत्र में ही तैयार करना बहुत ही लाभप्रद रहता है।
· Strong immunity Enhancer : Suvarnaprashan builds best resistant power and prevents from infections and makes child stronger .
· Physical development : Suvarnaprashan helps in physical development of your child.
· Memory Booster : It contains such Herbs which helps your child for memory boosting and it improves Grasping Power also.
· Active and Intellect
· Digestive Power : Suvarnaprashan is a best appetizer and have digestive properties also.
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Sukhayubhava!!!!!

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